सरल भाषा में मित्रों के लिए दूसरी ग़ज़ल आलम खुर्शीद सरल भाषा में मित्रों के लिए दूसरी ग़ज़ल आलम खुर्शीद
दिल में थी मुहब्बत, लब पे सुखनवरी, बस इतना मुख़्तसर था सरमाया मेरा. दिल में थी मुहब्बत, लब पे सुखनवरी, बस इतना मुख़्तसर था सरमाया मेरा.
कोहिनूर तो चिलमन में भी अपना रूप दिखाती। बस एक इशारे पर हम उसमें भी शब भर देते। कोहिनूर तो चिलमन में भी अपना रूप दिखाती। बस एक इशारे पर हम उसमें भी शब भर द...
तुम उसको दबाना जानते हो, और हम उससे उबारना । तुम उसको दबाना जानते हो, और हम उससे उबारना ।
बदनसीबी का आलम कुछ ऐसा है अंकित, सारे दोस्त भी हमें छोड़कर जाने लगे हैं। बदनसीबी का आलम कुछ ऐसा है अंकित, सारे दोस्त भी हमें छोड़कर जाने लगे हैं।
कारवां से बिछड़ गये ,हम चले राह अजनबी जुनून की ,सुकून की ,यकीन की कर जुस्तजू कारवां से बिछड़ गये ,हम चले राह अजनबी जुनून की ,सुकून की ,यकीन की कर जुस्तजू